अनंत यात्रा

बहन कस्तूरी जब से बाबूजी के सम्पर्क में आई तभी से उनके संरक्षण में आध्यात्मिक यात्रा शुरू हो गई | शीघ्रही उन्होंने पाया कि यह दिव्य विभूति (श्री बाबूजी महाराज ) वही हैं जो सम्पूर्ण मानवता का उद्धार करने, प्रकृति के अनुरोध पर अवतरित हुई है | 07 नवम्बर 1949 को श्री बाबूजी महाराज ने दुसरे अभ्यासियों का अध्यात्मिक मार्ग दर्शन के लिए बहन जी को प्रशिक्षक (प्रिसेप्टर ) बनाया, जिस कार्य को बाबूजी को समर्पित करते हुए बहन जी आजीवन करती रही, साथ ही बहन जी ने श्री बाबूजी महाराज द्वारा दिये गये प्रकृति के कई महत्वपूर्ण कार्य भी किये|

दिनांक 27 अक्टूबर 1953 को श्री बाबूजी महाराज ने बहन जी को संत गति से नवाज़ा और उन्हें संत की उपाधि से सम्बोधित किया | बाबूजी ने एक मात्र बहन जी को ही संत की उपाधिसे सम्बोधित किया | 29 अगस्त 1955 कोश्री बाबूजी महाराज ने बहन कस्तूरी को लिखा कि अब तुम मेरे में लय हो गई हो और अब तुम वह कस्तूरी नहीं रही जिसे तुम्हारे माता पिता ने जन्म दिया था | दिनांक 15 सितम्बर 1964 को श्री बाबूजी महाराज ने बहन कस्तूरी को लिखा – “तुमने ईश्वरीय दशा प्राप्त कर ली है |” और दिनांक 15 सितम्बर 1967 को बहन जी ने केंद्रीय क्षेत्र में प्रवेश पाया | 28 जून 1968 को वे ब्लीस (BLISS ) की दशा में प्रवेश पा गई | उन्होंने दिनांक 2 .5 .1975 के पत्र में श्री बाबूजी महाराज को लिखा – “मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि किसी ने मुझे अनन्त सागर पार करा दिया |”

श्री बाबूजी महाराज ने बहन कस्तूरी के ऊपर आध्यात्मिक अनुसन्धान किया | एकबार श्री बाबूजी महाराज ने उनसे कहा कि तुम अपनी आध्यात्मिक अनुभवों को मानव मात्र के हित के लिए लिखकर प्रकाशित करो | तब से उनकी लेखनी कभी रुकी नहीं | उनकी वाणी से दैविक धारा प्रवाहित होती थी जैसा कि उनके गीत गायन से अनुभव होता है | उनके गीत आध्यात्मिक अनुभव और दैविक प्राणाहुति से परिपूर्ण है | उनके लिखे हुए गीत संध्यागीत नामक पुस्तक दो भागो में प्रकाशित हुए हैं | उनके लिखे हुए लेख व अनुभव ’अनुभव सरिता’ के नाम से प्रकाशित हुए है! अपने जीवन को अभ्यासियों के मार्ग दर्शन में समर्पित करने के साथ – साथ उन्होंने अभ्यासियों की सहायता के लिए प्रशिक्षक (Preceptors ) भी तैयार किये|

उनके हर पहलु में श्री बाबू जी महाराज की उपस्थिति का अनुभव होता था | बहुधा ‘यहाँ बैठकर वहाँ रहना ‘ अर्थात शरीर से यहाँ पर दैविक देश में खोये रहने की स्थिति प्रतीत होती थी | जिस प्रकार श्री बाबूजी महाराज ने अपने माध्यम से समर्थ सदगुरु श्री लालाजी महाराज का जीवन उदाहरण प्रस्तुत किया, ठीक उसी प्रकार बहन कस्तूरी भी अपने सदगुरु श्री बाबूजी महाराज की सजीव उदाहरण रहीं |

बहनजी ने अपने एक गीत में लिखा है –

” ओ बाबू जी जो तेरे चरणों में आ गये,

अध्यात्म पथ पर जलती वो मशाल पा गये “

उन्होने दूसरे एक गीत में लिखा है –

” तन की माटी में मेरे वृक्ष जब उगेगा कोई ,

पाती पाती में तेरा नाम पढ़ सकेगा कोई ,

भक्क्ति के रस से सबके मन पुलक से जायेंगे |”

उनकी भक्क्ति और श्री बाबूजी में लय अवस्था इस कदर थी |