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संत कस्तूरी ने अपना सम्पूर्ण जीवन दिव्य विभूति श्री बाबूजी महाराज ( श्री रामचन्द्र, शाहजहाँपुर ) की सेवा और उनके द्वारा प्रतिपादित अध्यात्मिक कार्य में लगाया I उनके हर कार्य जैसे प्रवचन, सत्संग, गीत, गायन और बाबूजी से सम्बधिंत हर कार्य में दिव्यता की झलक होती थी| उनके कार्य में सदैव श्री बाबूजी महाराज की सामिप्यता का अनुभव होता था|

बहन कस्तूरी दिव्य प्रेम और भकित का जीता जागता उदाहरण रही है| श्री बाबूजी महाराज से उन्होंने अपने जीवन में जो सीखा वही दूसरों को सिखाया और उसे अपने जीवन में खुद उतार कर दिखाया| उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन पूज्य सदगुरू श्री बाबूजी महाराज में पूरी आस्था से समर्पित होकर व्यतीत किया| श्री बाबूजी जी महाराज ने खुद कहा कि संत कस्तूरी ने उनमें लयअवस्था प्राप्त कर ली है| उनको हम सभी प्यार से बहनजी या जिज्जी कहकर पुकारते है पर उनका स्नेह हम सब पर माँ की तरह रहा|

बहन जी ने एक बार श्री बाबूजी महराज के निर्देश पर अपना जीवन परिचय खुद लिखा और श्री बाबू जी के चरणों में समर्पित करते हुए कहा “मेरा वास्तविक जीवन तो आपसे मिलने के बाद ही शुरू हुआ है , अतः इस जीवन परिचय का कोई महत्व नहीं है | ”